दो दिन की मशक्कत के बाद गिलहरी के बच्चे को मां से मिलाया
पूर्वी दिल्ली। मंगलवार 18 अगस्त की बात है। तेज निगाहें चैनल के संवाददाता योगेश कुमार सोलंकी अपने निवास जौहरीपुर पहुंचे। वहां घर पहुंचते ही अपने पहले कार्यालय में कुछ कूडा पडा देखा। कूडा इधर-उधर किया तो कुछ नही दिखा कूडा साइड मे कर, वो ऊपर अपने कमरे मे चले गए। अगली बुधवार की सुबह तेज वारिश होने लगी, नीचे ऑफिस में आकर देखा छोटा गिलहरी का बच्चा फर्श पर पडा था, थोडा हिला कर देखा तो वह बोलने लगा, बच्चा बहुत छोटा था। थोडा रेंग रेंग कर चल रहा था। देख कर काफी दिमांग परेशान हुआ कि यह कहां से आया? कई सवाल दिमांग में चलने लगे? इसको कैसे बचाऊ, बाहर रखूं तो वारिश में मर जायेगा, अंदर इसको क्या खाने को दूं। काफी कशमकश के बाद दिल ने तय किया की इसे यहीं रहने दो और उसके लिए पापे का चूरमा डाल दिया और फर्श पर ही थोडा पानी गिरा दिया जिसे वह खाने के बाद पीनी पी ले। क्योंकि पानी किसी वर्तन मे रखता तो वह नही पी पाता। इतना करके भगवान भरोसे उसे छोड आया, रात को वापस गया तो वह रेंगता हुआ कार्यलय के गेट पर आ गया। रात को उसे बाहर सामने दुकान पर ऱख दिया कि इसको बाहर देखेगी तो इसकी मां ले जायेगी अन्यथा दुकान में घुस कर कुछ खाता रहेगा।
रात को पूरी रात सोचता रहा कि इस बच्चे का क्या होगा। खैर रात बीत गई सुबह उठते सबसे पहले उसको देखा बाहर दिखाई नही दिया, ऑफिस मे गया तो देखा पहली जगह बैठा मिला। देखते मैं चौक गया कि ये कैसे यहा आया। खैर सोचना बंद कर फिर दिमांग दौडाया और उसे लकडी के सहारे बैठाकर पास में पेड पर बैठा दिया कि ये बोलेगा तो इसकी मां ले जायेगी। मगर घर के दरवाजे तक ही पहंचा कि तेज आवाज आई पीछे देखा तो वह पेड से गिर गया। लगा कि मैने बहुत बडा पाप कर दिया, ये मर गया होगा। भाग कर उसके पास पहुंचा देखा तो वो ठीक था, फिर आस पास देखा तो एक गिलहरी पेड पर दिखी। फिर बच्चे को लकडी पर बैठाया और पास में दिवार पर बैठा दिया। कुछ देर खडा होकर उसे निहारता रहा, चंद मिनटो में देखा कि गिलहरी आई और उसे लाड करने लगी। मन को तसल्ली हुई लगा कि इसकी मां होगी और देखते देखते ही गिलहरी अपने तरीके को उसे मुंह मे भर अपने घौंसले में ले गई। कुछ देऱ के लिए इस पूरी घटना पर सोचता रहा कि आखिर ये सब कैसे हुआ, क्यों हुआ? फिर पुरानी कहावत याद आ गई कि – “होनी तो हो कर रहे अनहोनी ना हॉय, जाकों राखे साईयां मार सके ना कॉय”। दोस्तो इस सच्ची कहानी को मेरी बेटी वर्षा सोलंकी ने लिखा है। मैने मना किया था मगर सोचा यदि इस सच्ची कहानी को दस लोगों ने भी पढा और आगे शेयर किया और लोगों के दिल को छू गई तो इससे प्रेरित होकर कितने ही बेजुवान जानवर और पक्षियो को सहारा मिलेगा और उनकी जान बचाने हर कोई प्रयन्तशील रहेगा। जयहिन्द।